ये माह वर्षा ऋतु आने का है, मिथुन संक्रांति ज्येष्ठ और असाढ़ माह में आती है। इस महीने भगवान सूर्य की विशेष पूजा की परंपरा है। इसलिए ये संक्रांति पर्व और भी ख़ास हो जाता है।
संक्रांति का महत्व:
धर्म ग्रंथो और ज्योतिष में सूर्य के राशि बदलने को संक्रांति कहते है। पुराणों में इस दिन को पर्व कहा गया है। सूर्य जिस भी राशि में प्रवेश करता है उसे उसी राशि की संक्रांति कहा जाता है।
सूर्य एक साल में 12 राशियां बदलता है इसलिए साल भर में ये पर्व १२ बार मनाया जाता है। जिसमे सूर्य अलग-अलग राशि और नक्षत्रों में रहता है। संक्रांति पर्व पर दान-दक्षिणा और पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है।
संक्रांति का पुण्यकाल:
स्कन्द और सूर्य पुराण में ज्येष्ठ महीने में सूर्य की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। इस हिन्दू महीने में मिथुन संक्रांति पर सुबह जल्दी उठकर भगवान् सूर्य जल चढ़ाया जाता है। इसके साथ निरोगी रहने के लिए विशेष पूजा भी की जाती है।
सूर्य पूजा के समय लाल कपड़े पहनने चाहिए। पूजा सामग्री में लाल चंदन, लाल फूल और तांबे के बर्तन का उपयोग करना चाहिए। पूजा के बाद मिथुन संक्रांति पर दान का संकल्प लिया जाता है। इस दिन खासतौर से कपडे, अनाज और जल का दान किया जाता है।
15 जून को सूर्योदय के बाद ही करीब 06:17 पर सूर्य का राशि परिवर्तन होगा। इस वजह से सूर्य पूजा और दान करने के लिए पुण्य काल सुबह 06:17 से दोपहर 01:45 तक रहेगा। इस मुहूर्त में की गयी पूजा और दान से बहुत पुण्य मिलता है और इस दौरान किये गए श्राद्ध से पितृ संतुष्ट होते है।
संक्रांति का असर:
ज्योतिष ग्रंथों में तिथि, वार और नक्षत्रों के मुताबिक हर महीने होने वाले सूर्य संक्रांति का शुभ-अशुभ फल बताया गया है। इस बार मिथुन संक्रांति का वाहन सिंह है। इस कारण लोगों में डर और चिंता बढ़ेगी। इसके प्रभाव से लोग खांसी और संक्रमण से परेशान रहेंगे।
Comments